Supreme Court notice on plea for migrant labourers, seeks answers – प्रवासी मजदूरों को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस, जवाब मांगा

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प्रवासी मजदूरों को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस, जवाब मांगा

प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली:

प्रवासी मजदूरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दाखिल याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सात अप्रैल तक जवाब मांगा गया है. सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज ने इस मामले में याचिका दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) के बीच सभी प्रवासी श्रमिकों को न्यूनतम  मज़दूरी का भुगतान सरकार द्वारा किया जाए, चाहे वह नियमित हो, अनियमित हो या फिर खुद का काम करते हों. यह मज़दूरी उन्हें एक सप्ताह के भीतर दी जाए. 

याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिया गया लॉकडाउन का आदेश इस समान आपदा से प्रभावित नागरिकों के बीच मनमाने ढंग से भेदभाव कर रहा है. इसके चलते प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ी समस्या आ गई है और उनके पास रोजगार व खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में ये केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि वे इन सभी मजदूरों को न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान करें जिससे ऐसे समय में वे अपना व अपने परिवार का गुजारा कर सकें.

हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच से कहा कि घरों में आराम से बैठे एक्टिविस्ट  द्वारा खोली गई पीआईएल की दुकानों को बंद किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार श्रमिकों की बुनियादी जरूरतों को देख रही है.

भारत में प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. कोर्ट ने एक वकील की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा  कि होटलों, गेस्ट हाउसों और रिसॉर्ट का इस्तेमाल प्रवासी कामगारों के लिए इस आधार पर किया जाना चाहिए कि शेल्टर होम में पर्याप्त स्वच्छता और सुविधाएं नहीं हैं. कोर्ट ने कहा कि लाखों लोगों के पास लाखों विचार हैं, सबको सुना नहीं जा सकता. सभी विचारों को सुनने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता.

एसजी तुषार मेहता ने भी  पर आपत्ति जताई और कहा अदालतों से विशेष निर्देशों की कोई आवश्यकता नहीं है.  राज्य सरकारें पहले से ही आवश्यकतानुसार भवन, स्कूल, होटल आदि संभाल रही हैं.

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