Ram Navami 2020: Birth Story of Lord Rama Ramayan and Ramcharitmanas

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Ram Navami 2020: माता कौशल्‍या के गर्भ से पैदा हुए थे भगवान श्री राम, जन्‍म से पहले राजा दशरथ ने कराया था पुत्रेष्ठि यज्ञ

Ramayan: कोरोनावायरस लॉकडाउन के चलते दूरदर्शन पर फिर से रामायण का प्रसारण किया जा रहा है

नई दिल्ली:

हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार चैत्र माह की शुक्‍ल पक्ष की नवमी को श्री हरि विष्‍णु के अवतार श्री राम ने मनुष्‍य रूप में जन्‍म लिया था. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्‍मोत्‍सव को न स‍िर्फ भारत में बल्‍कि विदेशों में रह रहे हिन्‍दू भी राम नवमी (Ram Navami) के रूप में मनाते हैं. इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और पूरा माहौल राममय हो जाता है.  इस दिन हजारों की संख्‍या में भक्‍त भगवान राम की जन्‍म स्‍थली अयोध्‍या पहुंचर सरयू नदी में स्‍नान करते हैं. मान्‍यता है कि इस दिन सरयू नदी में स्‍नान करने से सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं और भक्‍तों को भगवान राम की असीम कृपा प्राप्‍त होती है. कहा जाता है कि राम नवमी के दिन भगवान राम की विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्‍ति होती है. इस दिन भगवान राम के बाल रूप रामलला को पालने में झूला भी झुलाया जाता है. इस दिन उनके जन्‍म की कथा सुनने का भी विधान है. यहां हम आपको भगवान राम की जन्‍मकथा के बारे में बता रहे हैं.

भगवान श्री राम के जन्म की कथा का वर्णन वाल्मिकी रामायण (Ramayan) और रामचरितमानस दोनों में ही मिलता है. जहां महर्षि वाल्मिकी श्री राम को मानव मात्र के रूप में वर्णित करते हैं, वहीं, महाकवि तुलसीदास उन्हें ईश्वर बताते हुए उनकी व्‍याख्‍या करते हैं. कथा के मुताबिक अयोध्या नरेश दशरथ की तीन पत्नियां थी, किसी तरह का कोई दुख नहीं था लेकिन एक चिंता थी कि तीनों रानियों में से किसी से भी पुत्र प्राप्ति न होने से राज्य के उत्तराधिकारी का संकट छा रहा था. तब महाराज दशरथ की गुरुमाता महर्षि वशिष्‍ठ की पत्नी ने इस पर चिंता जताते हुए अपनी शंका जाहिर की कि “आपके शिष्य पुत्र विहीन हैं ऐसे में राज-पाट को उनके बाद कौन संभालेगा?” तब महर्षि बोले कि “जब दशरथ के मन में यह विषय है ही नहीं तो फिर बात कैसे आगे बढ़ सकती है.” तब गुरुमाता एक दिन अपने पुत्र को गोद में लेकर दशरथ के महल में जा पंहुची. गुरु मां की गोद में बालक को देखकर दशरथ लाड़ लड़ाने लगे. तब गुरु मां ने कहा कि “आप तो महर्षि के शिष्य हैं, लेकिन आपका तो कोई पुत्र नहीं है. ऐसे में इसका शिष्य कौन बनेगा.” गुरु मां के वचन सुनकर दशरथ को ग्लानि हुई और वे महर्षि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति के उपाय हेतु उनके चरणों में गिर पड़े.

इस पर महर्षि ने कहा कि “आपको पुत्र प्राप्ति तो हो सकती है लेकिन उसके लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाना पड़ेगा.” तब दशरथ बोले- “गुरुदेव तो देर किस बात की है जब चाहे आप शुरू कर सकते हैं.” तब महर्षि बोले- “राजन! यह इतना सरल नहीं है. जो भी पुत्रेष्ठि यज्ञ करेगा उसे अपनी पूरे जीवन की साधना की इस यज्ञ में आहुति देनी पड़ेगी.” दशरथ चिंतित हुए बोले- “हे ऋषि श्रेष्ठ! ऐसा करने के लिए कौन तैयार हो सकता है?” फिर उन्होंने दशरथ की पुत्री शांता की याद दिलाई जिसे उन्होंने रोमपाद नामक राजा को गोद दे दिया था और उन्होंने शांता का विवाह ऋंग ऋषि से किया था. महर्षि बोले यदि शांता चाहे तो ऋंग ऋषि से यह यज्ञ करवाया जा सकता है. तब शांता ने अपने पति ऋषि ऋंग को इसके लिये तैयार किया बदले में इतना धन उन्हें दान में दिया गया जो उनकी अपनी संतान के भरण-पोषण के लिए जीवन पर्यंत पर्याप्त रहे.

यज्ञ करवाया गया और हवन कुंड से प्राप्त खीर तीनों रानियों कौशल्‍या, सुमित्रा और कैकेयी को दी गई. प्रसाद ग्रहण करने से तीनों रानियों ने गर्भधारण किया और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति तथा शुक्र जब अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे तब कर्क लग्न का उदय होते ही माता कौशल्या के गर्भ से भगवान श्री विष्णु श्री राम रूप में अवतरित हुए. इनके पश्चात शुभ नक्षत्रों में ही कैकेयी से भरत व सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने जन्म लिया.

समस्त राज्य में आनंद उल्लास छा गया. महाराज दशरथ ने राजद्वार पर आशीर्वाद देने पंहुचे समस्त भाट, चारण, ब्राह्मणो व गरीबों को दान दक्षिणा देकर विदा किया. महर्षि वशिष्ठ ने चारों पुत्रों का नामकरण किया. 

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